Constitution Club Elections News :संसद की राजनीति आमतौर पर टीवी डिबेट और चुनावी मंचों पर सत्ता और विपक्ष की जंग तक सीमित दिखाई देती है। लेकिन कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के हालिया चुनाव ने यह धारणा तोड़ दी। यहाँ जीत-हार का फैसला दलगत राजनीति से ज़्यादा व्यक्तिगत छवि, पुराने रिश्तों और संसदीय नेटवर्क पर निर्भर रहा।इस बार सचिव (प्रशासन) पद पर सीधा मुकाबला था। पूर्व भाजपा सांसद डॉ. संजीव कुमार बालियान को केवल 291 वोट मिले और वे हार गए। वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने 391 वोट पाकर जीत दर्ज की। इससे साफ़ हुआ कि क्लब में रूडी की पकड़ अब भी मजबूत है, जबकि बालियान अपेक्षित समर्थन नहीं जुटा सके।
किसे मिले कितने वोट?
लेकिन असली आकर्षण सचिव पद से ज़्यादा कार्यकारिणी सदस्य चुनाव रहा। इसमें 14 प्रत्याशी मैदान में थे। सबसे बड़ी जीत पूर्व सांसद प्रदीप गांधी के नाम रही, जिन्हें 507 वोट मिले। सक्रिय राजनीति से दूर रहने के बावजूद यह नतीजा उनकी मजबूत पकड़ और व्यक्तिगत नेटवर्क को दिखाता है। गांधी के बाद उद्योगपति से नेता बने नवीन जिंदल ने 501 वोट हासिल किए। उनका प्रदर्शन बताता है कि वे संसदीय बिरादरी और युवा सांसदों दोनों के बीच भरोसेमंद माने जाते हैं। तीसरे और चौथे स्थान पर नरेश अग्रवाल (450 वोट) और एन.के. प्रेमचंद्रन (444 वोट) रहे। वहीं कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा को 426 वोट मिले और वे पांचवें स्थान पर रहे।
इसके अलावा कलिकेश सिंह देव (399), जसबीर सिंह गिल (394), प्रदीप वर्मा (375), अक्षय यादव (359), प्रसून बनर्जी (357) और श्रीरंग बार्ने (356) भी मामूली अंतर से जीतकर कार्यकारिणी में पहुँचे। वहीं हारने वालों में सबसे बड़ा झटका पूर्व सांसद अस्लम शेर खान को लगा, जिन्हें केवल 210 वोट मिले। अनूप सिंह (258) और कृष्णा प्रसाद टेन्नेटी (317) भी हार गए।
नतीजे बताते हैं कि कॉन्स्टीट्यूशन क्लब का चुनाव सत्ता बनाम विपक्ष की लड़ाई नहीं बल्कि व्यक्तिगत भरोसे और सहज छवि का खेल है। यही कारण है कि प्रदीप गांधी जैसे पूर्व सांसद सबसे ज्यादा वोट लेकर शीर्ष पर पहुँच गए। राजनीतिक संकेत साफ़ हैं—भाजपा के पुराने चेहरे अब भी क्लब में मजबूत पकड़ रखते हैं, जैसा कि रूडी और प्रदीप गांधी की जीत से दिखा। वहीं कांग्रेस के लिए दीपेंद्र हुड्डा और जसबीर गिल का प्रदर्शन उम्मीद जगाने वाला है। लेकिन सबसे बड़ा सबक यही है कि यहाँ राजनीति का चेहरा अलग है—जहाँ व्यक्तिगत रिश्ते और अनुभव ही सबसे बड़ी ताक़त हैं।
