सतना से तीन बार विधायक रहे और लोकतंत्र सेनानी संघ के वरिष्ठ नेता शंकरलाल तिवारी का लंबी बीमारी के बाद रविवार को दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। वे 72 वर्ष के थे। उनके निधन की खबर से पूरे सतना जिले में शोक की लहर फैल गई है। अपनी सादगी और बेबाक शैली के लिए पहचाने जाने वाले शंकरलाल तिवारी का निधन सतना की राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति है। उन्हें आपातकाल के दौरान मीसाबंदी के रूप में 18 महीने तक जेल में रहना पड़ा था। इस दौरान उन्हें रीवा, टीकमगढ़ और सतना की जेलों में यातनाएं भी सहनी पड़ीं।
एक स्थानीय वेब पोर्टल को दिए गए इंटरव्यू में खुद शंकर लाल तिवारी ने बताया था कि मैं 350 से अधिक बार जेल जा चुका हूं। 350 तक तो मैंने गिनती की थी। फिर इसके बाद गिनती करना छोड़ दिया। महज 21 वर्ष की उम्र में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुड़ गया था। इसके बाद लगातार संघ कार्य में जुटा रहा। छात्र जीवन में ही जन सेवा से राजनीति सफर कब कैसे शुरू हुआ और कहां पहुंच गया कुछ पता ही नहीं चला। तिवारी अपने पूर्व के दिए गए इंटरव्यू में ये भी कह रहे थे कि मेरी पारिवारिक पृष्ठी भूमि काफी सामान्य रही है। तमाम तरह के आभावों में जीवन बीता है। घर का बड़ा लड़का था तो जिम्मेदारियां भी मेरे पास थीं। लेकिन मेरे माता-पिता ने कभी मुझे नहीं रोका। हालांकि, मेरे जीवन के संघर्ष को देख शुरुआती दिनों में वो आंतरिक रूप से खुश नहीं थे।
साथ ही अपने इस साक्षात्कार में वो ये भी कहा था कि विपक्ष की पार्टी का ऐसा कोई सीएम नहीं था जिसको मैंने सतना में काला झंडा न दिखाया हो। अपने छात्र राजनीति के जीवन में। आपातकॉल के दौरान कैसे वो भूमिगत होकर संघ का कार्य कर रहे थे इसके बारे में भी बताया। पुलिस से बचने के लिए वो आपातकॉल में प्रयागराज से बिहार तक फरारी काटी थी।
जीवन-परिचय और राजनीतिक सफर
शंकरलाल तिवारी का जन्म 8 अप्रैल 1953 को सतना जिले के चकदही गांव में हुआ था। वह बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े थे। उन्होंने अपनी युवा अवस्था में ही एक जुझारू और बेबाक नेता के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। आपातकाल के बाद वे सक्रिय रूप से भाजपा की राजनीति में शामिल हो गए। उन्होंने पार्टी में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। उनका राजनीतिक सफर तब और मजबूत हुआ जब उन्होंने 1998 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधानसभा चुनाव लड़ा। इसके बाद 2003, 2008 और 2013 में वे भाजपा के टिकट पर लगातार तीन बार सतना विधानसभा से विधायक चुने गए।
अपनी साफ-सुथरी छवि और जनसेवा के प्रति समर्पण के कारण वे जनता के बीच बेहद लोकप्रिय थे। सतना और पूरे विंध्य क्षेत्र की राजनीति में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। उनके निधन को एक युग का अंत माना जा रहा है।
पारिवारिक जीवन
शंकरलाल तिवारी अपने पीछे अपनी पत्नी सुषमा तिवारी, तीन बेटे राजनारायण तिवारी, आशीष और पुनीत, और एक बेटी विजयश्री को छोड़ गए हैं। वे सतना के सुभाष चौक स्थित अपने पैतृक निवास में परिवार के साथ रहते थे। उनके निधन पर विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने गहरा दुख व्यक्त किया है। उनका जाना न केवल भाजपा के लिए, बल्कि समूचे सतना जिले के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
गार्ड ऑफ ऑनर के साथ हुआ अंतिम संस्कार।
सोमवार को नजीराबाद स्थित मुक्तिधाम में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। उनके बड़े बेटे राजनारायण तिवारी राजा ने मुखाग्नि दी। अंतिम संस्कार के दौरान प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल सहित कई जनप्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता और बड़ी संख्या में नागरिक उपस्थित रहे।
